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अनुवादक नीता पोरवाल की प्रस्तावना - लाल आत्माएं - (एक लंबी कविता) - मेई वान फान - अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद : नीता पोरवाल / Về trường ca “Những linh hồn thẫm đỏ” / About the epic The Scarlet Spirits - Neetta Porwal

मेई वान फान

अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद : नीता पोरवाल

Mai Văn Phấn

Translated from English into Hindi by Neetta Porwal

Neetta Porwal dịch từ tiếng Anh sang tiếng Hin-đi

 

 

 

Neetta Porwal, poet & translator

 

 

 

अनुवादक की ओर से

 

 

लाल आत्ाएँवियतना् के सुप्रवसद्ध कवि ्ाई िान फान रवित

्हाकावयThời tái chế’ (An Era of Junk) का वहंदी रूपांतरण

है। आपने इस कावय ्ें वियतना् ्ें 20िीं सदी की शुरुआत से लेकर अब

तक घव्टत हुईं त्ासवदयों, ग़लवतयों, जव्टलताओं, अंतविविरोधों और विसंगवतयों

का सूक्् विश्ेषण वकया है। अपनी इस कविता ्ें आप एक ऐसी दुवनया

का बोध कराते हैं जहाँ इंसान और िसतु के बीि कोई सपष्ट सी्ांकन नहीं है

जहाँ प्रकृवत का सिभाि स्झे बग़़ैर इंसान विकास के ना् पर धरती, नवदयों,

िनसपवतयों को रौंदता, उन्हें धूल-धुएँ और किरे से भरता बेतहाशा भागा जा

रहा है, यहाँ तक वक ्ौत को अपनी ओर बढ़ते देखकर भी वनश्चंत है।

स्कालीन वियतना्ी सावहतय ्ें वजन सावहतयकारों ने देश ्ें वयाप्त

भयािह अफरा-तफरी और जव्टलताओं ्ें जीिन गुजारते ्ानि के अशसततिगत

संक्टों को शबदबद्ध करने का संकलप वलया, उन्ें ्ाई िान फान का ना्

प्र्ुखता से वलया जाता है। ज़ैसा वक सभी जानते हैं वक वियतना् का इवतहास

लंबे स्य तक रक्त रंवजत रहा है। वियतना्ी नागररकों को पाँि दशकों ्ें

तीन अलग-अलग साम्ाजयिादी ताक़तों के व़िलाफ आजादी की जंगें लड़नी

पड़ीं पर वियतना् ने दुवनया के सभी देशों के सा्ने एक व्साल क़ाय् की

और सावबत कर वदया वक जब एक छो्टे से देश के लोग अपनी ्ुशक्त और

संप्रभुता के वलए क्र कस लेते हैं तो दुवनया की सबसे बड़ी दुजदेय ताक़त

से भी अवधक ताक़तिर हो उठते हैं। यही िजह है वक वियतना् अंतरराष्टीय

द्न और दंश झेलने के िािजूद अपने फौलादी इरादों और दृढ़ संकलप शशक्त के कारण आज विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है पर युद्ध की

विभीवषका देख िुकी आँखें उस ़िौफनाक ्ंजर को भूलें तो भूलें कैसे! कवि

फान द्ारा रेखांवकत एक दृशय ह्ें सतबध करके रख देता है-

युद्ध ्ें वसफफ़ और वसफफ़ रक्त बहता है और हर तरफ रक्त ्ें लथपथ

रक्त नजर आता है। क्षत-विक्षत शिों से भरे जंगल! रक्त से भरी नवदयाँ और

नाले! िे उन शिों को पहिानते हैं, तालाब और झीलें फूले हुए ्ृतों को डूबते

और उतराते हुए देखती हैं। बहते-बहते रक्त हाथ वहलाता है और एक-दूसरे

को पुकारता है, बग़़ैर देखे।

राष्टवहत के वलए ्ाई िान फान कावय सृजन की पारंपररक को्ल

प्रिृवति छोड़कर कठोर, सपा्ट और खुरदुरे धरातल पर िलने का जोवख्

उठाते हैं कयोंवक एक सावहतयकार देशकाल और राजनीवत से अछूता नहीं रह

सकता ज़ैसा वक सुप्रवसद्ध सावहतयकार सवचिदानंद हीरानंद िातसयायनअज्ेय

का भी कहना है वकसावहतय और राजनीवत को दो विरोधी पृथक तति ्ान

लेना वकसी भी युग ्ें उवित नहीं। आज के संघषविशील युग ्ें तो ऐसा ्ानना

्ू

खवितापूणवि ही है। सावहतय और राजनीवत का प्रभाि एक-दूसरे पर रोका नहीं

जा सकता; िाहे िह युग राजनीवत का हो िाहे सावहतय का।

फान अपनी कविता ्ें एक ओर सा्ावजक पररिेश और पररशसथवतयों

का सजीि वित्ण करते हैं िहीं दूसरी ओर लोगों के उदासीन और ढुल्ुल

रि़ैये को रेखांवकत कर सावहतय के क्षेत् ्ें अपने दावयति का वनिविहन भी करते

हैं ज़ैसे वक:

घनघोर अँधेरी इस रात ्ें सभी सो रहे हैं, जबवक एक गहरी लाल नदी

बह रही है। िे सो रहे हैं ्ुँह ्ें वनिाला डालते हुए, िे आँखें खोलकर भी

सोए रहते हैं, िे दरिाजे तक जाते हुए सोते हैं और वफर सोते हुए ही दरिाजा

भी खोल देते हैं।

कवि का फलक विसतृत है। नये युग के आग़ाज के वलए कवि फान

घ्टनाक्र् का आकलन कई-कई आया्ों से करते हैं वक ह् िवकत हुए

वबना नहीं रह पाते। इसके वलए आप रंग्ंि का वनरूपण करते हैं वकरदारों की

साज-सज्ा, िेश-भूषा, भाि-भंवग्ा और दशविकों की प्रवतवक्रया के साथ-साथ प्रेक्षागृह की धिवनयों और प्रकाश के ्ाधय् से िसतुशसथवत का विश्ेषण

करते हैं, पाठकों को अपने साथ जोड़ते हैं और विवभन्न संभािनाओं को

उद्ाव्टत करते हैं। आप संिाद के ्ाधय् से जव्टलत् गुशतथयों को सुलझाते

हैं और इसके वलए नये-नये रूपक और पररदृशय गढ़ते हैं ज़ैसे वक-

दहकते-धधकते तिे पर तड़पते-छ्टप्टाते अपने पुनजविन्् का सिपन

देखते कचिे ्ांस के ्टुकड़ों ्ें बेबस शोवषत ्ानि की पररकलपना कैसा

्ाव्विक और सजीि दृशयांकन प्रसतुत करती है!’

विनाश वसफफ़ युद्ध, विसफो्ट या क़तलेआ् से नहीं होता। ह् जाने-

अनजाने अपने ही अंत के वलए सीधे सरल नजर आते इंसानों के रूप ्ें

क़साइयों को पोवषत कर रहे हैं। क़साई के ्ाधय् से उघड़ी परतें ह्ें अिाक्

कर देती हैं। एक बानगी देवखए-

सीधे-सरल नजर आते क़साई हर जगह ्ौजूद हैं- िे रसोई, बाग़ीिों,

बाजारों, रेसतराँ, िरागाहों और गवलयों ्ें फेरी लगाते हुए हर कहीं घुसप़ैठ कर

िुके हैं। ्ृतयु अब गो्ांस के रसीले सु़िवि लाल ्ांसल ्टुकड़ों, नर् झींगों के

रूप ्ें ह्ारे पास रही है।

ह् अनु्ान भी नहीं लगा सकते वक ये क़साई अपना गँडासा कहाँ और

कब िला रहे थे।

क़साई कभी-कभी ख़ूबसूरत फूल के रूप ्ें ह्ारे पास आता है। िह

वदलफरेब रंगों और ख़ुशबुओं से आपको लुभाता है वफर आपकी ऊँगली

पकड़ आपको एक गली, एक अँधेरी और दूर-दराज जगह ले जाता है और

आपसे कहता है वक ्रने के वलए अब आपको कोई एक रासता िुनना होगा।

कविता ्ें दजवि स्ृवतयाँ वििवलत अिशय करती हैं पर कवि का उद्ेशय

हतोतसावहत होना या करना नहीं।

प्रतयेक रिना कवि को ह्ेशा निीनीकृत करने ्ें ्दद करती है और

एक ख़ूबसूरत दुवनया और सुखद जीिन की खोज करती है।

्ाई िान फान की यह उशक्त इस संस्रण ्ें सपष्ट पररलवक्षत होती है।

आप आत् अिलोकन करते हैं। दुसतर, दुरूह पररशसतवथयों ्ें अपने शरीर

और ्न को निीन ऊजावि देने के वलए उक़ाब की ि़ैभिशाली और ददविनाक जीिन श़ैली से सीख लेते हैं। वबना पलक झपकाए सीधे सूयवि को देखने का

साहस करते हैं वजससे विधिंसक तूफान के कंधों पर ्जबूत पकड़ बनाई

जा सके, वजससे धूल-धुएँ और विसफो्टों से अ्टे आस्ान ्ें रंग-वबरंगी

पतंगें उड़ान भर सकें, वजससे रक्त से सनी अकुलाती धरती पर ऋतुएँ और

िनसपवतयाँ सतत वहलोरें ले सकें, वजससे तलछ्ट ्ें विलीन हुए रंग सतह पर

िापस अपनी सतरंगी छ्टा वबखेर सकें। शया्ल साँझ की विकलता कवि फान

की ऊजविशसित इस उशक्त से क् हो उठती है-

रिना िाहे वकसी भी प्रिृवति के साथ वलखी जाए, दुवनया को वफर से

सुंदर बनाने की िाह रखती है, बुराई का विरोध करती हुई ह्ेशा पुनरुतथान

की भािना पोवषत करती है।

संभािनाओं को तलाशती रिना अतीत के सयाह काले रशक्त् ्ागवि से

गुजरती हुई, गहरी लाल और वफर ितवि्ान तक आते-आते ि्कीले लाल ्ें

बदल जाती है।

लाल आत्ाएँ्ें ्ाई िान फान अपनी विवशष्ट श़ैली ्ें अपने स्य

की बहुत-सी अवशष्टताओं पर बड़ी वशष्टता से वििार करते हैं। आपने अपनी

इस कविता ्ें विवभन्न संयोजनों का प्रयोग भी बड़ी कुशलता के साथ वकया

है। प्रशनाकुलता-संिाद धव्विता, विस्य और वयंगय, ्ृतयु और जीिन, युद्ध

और शांवत, आँसू और ददवि भरी ्ुसकान के बीि एक राह बनाते हुए आप

कविता के आरंवभक िाकय से लेकर अंवत् शबद तक कविता की असपष्टता

से लेकर गद्य की पारदवशविता तक की सफल यात्ा तय करते हैं।

इस तरहलाल आत्ाएँअपने स्य के स्ग्र पररदृशय का जीिंत एिं

्हतिपूणवि दसतािेज है वजस्ें कवि फान उक़ाब की तरह वििवलत हुए बग़़ैर

असह्य यंत्णाओं को अपना शशक्त-पुंज बनाते हैं और भविषय-सिपनों के

पुषपण-पल्लिन की प्रवतबद्धता के साथ आगे बढ़ते हैं।

्ाई िान फान की कृवतयाँ अनेक भाषाओं ्ें अनुवदत हुई हैं। इस

उल्लेखनीय पुसतक का अनुिाद भी सिीवडश, अँग्रेजी के बाद अब रूसी और

ज्विनी भाषा ्ें वकया जा रहा है।

 

- नीता पोरवाल

 

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नीता पोरवाल (Neetta Porwal)

 

नीता पोरवाल (15 जुलाई 1970) का जन्म उत्तर प्रेदश के अलीगढ़ शहर में हुआ| आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्नातकऔर फिर बी. एड. की उपाधि लेने के बाद आप अध्यापन करने लगीं| आप एक कवि और कथाकार होने के साथ अनुवादक भी हैं|बांगला बाउल गीतों और रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं के साथ-साथ देश-विदेश के अनेक कवियों और कथाकारों की रचनाओं कोआप हिंदी में रूपांतरित कर चुकीं हैं| बतौर अनुवादक विगत कई वर्षों तक कृत्या पत्रिका के साथ जुड़ीं रहीं| 2018 में चीनीकविताओं कासौ बरस सौ कविताएँ (चीन की कविताओं में आधुनिकवाद)’ नामक चीनी कविता संग्रह आया जिसके लिए उनकीटीम को चीनी साहित्य के अनुवाद के लिए DJS Translation Award  प्राप्त हुआ है|

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



 

 

 

 

 






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